घटना पिथौरागढ़ में भारत-चीन सीमा के पास हुई। यहां तवाघाट-लिपुलेख राष्ट्रीय राजमार्ग पर गरबाधार में भयानक भूस्खलन हुआ। भूस्खलन के कारण विशाल चट्टान नीचे खिसक गई और उस पर पत्थर बरसने लगे।
उत्तराखंड (Uttarakhand) में भूस्खलन के कारण एक बार फिर चट्टानें खिसक गईं . जिसके बाद पत्थरों की बारिश शुरू हो गई। घटना पिथौरागढ़ में भारत-चीन सीमा के पास हुई। यहां तवाघाट-लिपुलेख राष्ट्रीय राजमार्ग पर गरबाधार में भयानक भूस्खलन हुआ। भूस्खलन के कारण विशाल चट्टान नीचे खिसक गई और उस पर पत्थर बरसने लगे। जिससे धूल के बादल बन गए। धूल के बादलों के उठने से चारों ओर अंधेरा छा गया। पत्थर में दरार पड़ते ही मौके पर मौजूद कर्मचारियों व कर्मियों में हड़कंप मच गया। सभी सुरक्षित भागे।
आदि कैलाश यात्रा के मद्देनजर सड़क का काम चल रहा है
हालांकि इस घटना में किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। मौके पर मौजूद लोगों ने पूरी घटना का वीडियो बना लिया। वीडियो में घटनास्थल के पास एक पोकलैंड मशीन भी नजर आ रही है। धारचूला के एसडीएम के मुताबिक आदि कैलाश यात्रा को ध्यान में रखते हुए सड़क का काम चल रहा है. ऐसे में तीर्थयात्रियों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिए 18 मई को मार्ग खोल दिया जाएगा।
पर्वत भारत के क्षेत्रफल का लगभग 30 प्रतिशत भाग घेरे हुए हैं। इसलिए भूकंप, भूस्खलन और चट्टानों के खिसकने जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लाखों लोगों की जान-माल का नुकसान होता है। इनसे होने वाले नुकसान को कम करना हमारे हाथ में है या नहीं, यह आज एक बड़ा सवाल बन गया है। इसके लिए पहाड़ों पर हो रहे निर्माणों पर ध्यान देने की जरूरत है। इन निर्माणों से पर्यावरण को नुकसान न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में काम करने वाले कुछ बड़े बिल्डर भी इसके लिए कदम उठाकर आगे आ रहे हैं।
इससे पहले जोशीमठ से लेकर उत्तराखंड तक के सभी इलाकों में जमीन में दरारें आने के बाद निर्माण में इसी तरह की कमी का सामना करना पड़ रहा था। जानिए पहाड़ों से जुड़ा हर पहलू इस खास रिपोर्ट में। प्राकृतिक आपदा प्रवण क्षेत्रों में निर्माण के लिए पूर्व-निर्मित भवन एक संगठित और मजबूत विकल्प हैं। इन संरचनाओं को पर्यावरण की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जा सकता है।
भूकंप और हवा की गति जैसी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए। इन ढांचों का आधार पारंपरिक ढांचों की तुलना में हल्का होता है, जिससे निर्माण के बाद जमीन पर दबाव 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त, भूस्खलन की स्थिति में ऐसी संरचनाएं पारंपरिक संरचनाओं की तुलना में अधिक स्थिर होती हैं।