तनोत माता का चमत्कार! पाकिस्तान ने 3000 बम दागे, 450 गोले मंदिर परिसर में गिरे लेकिन एक भी नहीं फटा
जैसलमेर से थार रेगिस्तान में 120 किमी दूर सीमा के पास तनोट माता का सिद्ध मंदिर स्थित है। इस देवी को थार की वैष्णो देवी और सैनिकों की देवी के उपनाम से भी जाना जाता है। जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई अजीबोगरीब यादें जुड़ी हुई हैं। राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने में तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि माता ने सैनिकों की मदद की और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान की ओर से दागे गये जिंदा बम रखे हुए हैं।
दुश्मन ने 3000 बम दागे, 450 मंदिर परिसर में गिरे लेकिन फटे तक नहीं
शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन के तोपखाने जबर्दस्त आग उगलते रहे। लेकिन तनोट की रक्षा के लिए मेजर जय सिंह की कमांड में ग्रेनेडियर की एक कंपनी और सीमा सुरक्षा बल की दो कंपनियां दुश्मन की पूरी ब्रिगेड का सामना कर रही थी। 1965 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि तरफ से गिराए गए करीब 3000 बम भी इस मंदिर पर खरोच तक नहीं ला सके। यहां तक कि मंदिर परिसर में गिरे 450 बम तो फटे तक नहीं। माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे और परिणाम स्वरूप स्वयं पाक सेना की ओर से अपनी सेना का सफाया हो गया।
तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है। इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों की ओर से ही अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है। मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है। वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जिनती आस्था इस मंदिर के प्रति है उतनी ही आस्था देश के इन जवानों के प्रति भी है। जो यहां देश की सीमाओं के साथ मंदिर की व्यवस्थाओं को भी संभाले हुए है। बीएसएफ ने यहां दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधाएं भी जुटा रखी है। मंदिर और श्रद्धालुओं की सेवा का जज्बा यहां जवानों में साफ तौर से देखने को मिलता है। सेना की आर से यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिये वर्ष पर्यन्त निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है। नवरात्रों के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड़ बढ़ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है।
बॉलीवुड की बॉर्डर फिल्म इसी पर बनी
1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट की ओर से किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है। यहां पाकिस्तान सेना की ओर से मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे। BSF ने पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है। आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। पुजारी भी सैनिक ही हैं। सुबह-शाम आरती होती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक रक्षक तैनात रहता है, लेकिन प्रवेश करने से किसी को रोका नहीं जाता। फोटो खींचने पर भी कोई पाबंदी नहीं है। वहीं इस मंदिर की ख्याति को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की पटकथा में भी शामिल किया गया था। दरअसल, यह फिल्म 1965 के युद्ध में लोंगेवाला पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना के हमले पर ही बनी है।