अमृतवाणी बुद्ध: महात्मा गौतम बुद्ध ने उस समय घर-परिवार का त्याग कर दिया जब वे 29 साल के थे. गृह त्याग के बाद उन्होंने बोद्ध गया में बोधि वृक्ष के नीचे सालों तपस्या की और ज्ञान को प्राप्त किया.
बुद्ध अमृतवाणी, महात्मा बुद्ध के त्याग और तपस्या की कहानी: बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध ने एक दिन अचानक घर-गृहस्थी का त्याग कर दिया. सांसारिक और पारिवारिक मोह-माया का त्याग कर वे जंगल की ओर चले गए.
बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीच करीब छह सालों तक तप किया और इस तरह उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने लोगों के बीच अहिंसा, प्रेम, शांति और त्याग का संदेश देकर समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया.
कहा जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म ऐसे काल में हुआ जब समाज में अत्याचार, भेद-भाव, अशांति, अनाचार, अंधविश्वास और रूढ़ियां अपना जड़ जमा रही थी. तब इन कुरीतियों को दूर करने के लिए बुद्ध जैसे महापुरुष का जन्म हुआ. बुद्ध ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने इन कुरीतियों की बेड़ियों से लोगों को मुक्त कराया.
महात्मा बुद्ध का असली नाम राजकुमार सिद्धार्थ था. कहा जाता है कि वे बचपन से ही अन्य बच्चों से काफी अलग थे. वह बचपन में भी नटखट और चंचल होने के बजाय शांत व गंभीर स्वभाव के थे और बहुत कम बोलते थे. उन्हें अधिकांश समय एकांत में बैठना और चिंतन करना अच्छा लगता था.
जैसे जैसे गौतम बुद्ध बड़े होने लगे उनका यह स्वभाव और भी जटिल होता गया. इस तरह से धीरे-धीरे सासांरिक सुखों के प्रति उनकी रुचि भी खत्म होने लगी. उनका विवाह कर दिया और कुछ समय बाद एक पुत्र भी हुआ. लेकिन बुद्ध का वैराग्य भाव बढ़ता ही चला गया. इस तरह एक दिन बुद्ध ने चुपचाप गृह त्याग कर दिया.
बुद्ध ने क्यों छोड़ा घर?
अपरिग्रह होने पर कुछ लोग क्षमता के अनुसार अपनी संपत्ति छोड़ देते हैं. क्योंकि वे आत्मा से जुड़ सके. परिग्रह यानी सम्पत्ति के साथ जुड़ाव होने से आत्मा के साथ जुड़ाव नहीं हो सकता और आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता. कुछ लोगों का लक्ष्य जीवन में केवल ज्ञान को प्राप्त करना होता है, तो ऐसे लोग अपरिग्रह को अपनाते हैं. यानी आत्मा के अलावा अन्य किसी भी वस्तु से जुड़ाव नहीं रख पाते. ना घर, ना परिवार, ना संपत्ति और ना कोई अन्य वस्तु. बुद्ध के भी गृह त्याग का यही कारण था. वे केवल अपनी आत्मा से जुड़ना चाहते थे.
महात्मा बुद्ध की तपस्या
बुद्ध के मन में कई प्रश्न थे और इन्हीं प्रश्नों का उत्तर ढूढ़ने के लिए उन्होंने तपस्या शुरू की. लेकिन सालों तपस्या के बाद भी उन्हें उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला. तब वे एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए और ठान लिया कि सत्य को जाने बिना यहां से नहीं उठेंगे. इसी पेड़ को अब बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है. इस पेड़ के नीचे ही बुद्ध को पूर्ण व दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस तरह से ज्ञान व सत्य की खोज में बुद्ध को छह साल लग गए और 35 वर्ष की आयु में वे सिद्धार्थ गौतम से महात्मा गौतम बुद्ध बन गए.